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Description of World By Lord Shri Krishna

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Description of World By Lord Shri Krishna


Dukhalaya Ashashwata



श्री भगवनुवाच्: 

मामुपेत्व पुनर्जन्म द:खालयमशाश्वतम्  |

नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गता: || 15 ||


अध्याय 8 श्लोक 15 
श्रीमद्भगवतद्गीता 

परमाम् = परम 
संसिद्धिम् = सिद्धि को 
गता: = प्राप्त हुए 
महात्मानः = महात्माजन 
माम् = मेरेको 
उपेत्य = प्राप्त होकर 
दुःखालयम् = दुःखके समानरूप 
अशाश्वतम् = क्षण्भङ्गुर् 
पुनर्जन्म = पुनर्जन्म को 
न = नहि 
आप्नुवन्ति = प्राप्त होते है 

Sholka 15

Having attained Me, these MAHATMAS (great souls)

do not again take birth, which is the house of pain and is non-eternal,


they having reached the Highest Perfection, MOKSHA.


Method to reach the Ultimate Purpose of Life

श्लोक १४
shloka 14 

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः |

तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः || 14 ||


टिपणी 

जैसे औषधालय में केवल दवाई, वाचनालय में केवल पुस्तक उसी तरह दुःखालय में केवल दुःख ही मिलना है। 
श्री भगवान् 'अशाश्वत' भी कहते है। 
श्लोक १४ में परम तत्व प्राप्त करने का तरीका सुस्पष्ट करने के बाद भगवान् श्री कृष्ण परम तत्व प्राप्त होना मतलब क्या यह हमारी समज में आये ऐसी भाषा में श्लोक १५ में बताते है। 

Source Acknowledgment Copyright
Lord Shri Krishna
English translation Swami Chinmayanand
Hindi meanings Gita press, Gorakhpur

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